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सेवा का अर्थ व उसका महत्व
हमें आज एक संदेश प्राप्त हुआ ( गुरुजी के इनबॉक्स में ) और प्रेषक (सन्देश भेजने वाला) ने सेवा के बारे में पूछा । प्रेषक जानना चाहता था कि उनके द्वारा सेवा (गुरुजी के स्थान पर) क्यों की जाती है ? यह इस जन्म के लिए या हमारे भविष्य जन्मों के सुख प्राप्त करने के लिए है? प्रेषक यह भी जानना चाहता था कि सेवा मन में कुछ प्राप्ति की इच्छा के साथ की जाये और उसे वह प्राप्त ना हो, तो क्या किया जाए। प्रेषक के प्रश्नों का संक्षिप्त में जवाब दिया गया था लेकिन यह महसूस किया गया कि प्रेषक उन संक्षिप्त जवाबों के साथ पूरी तरह से संतुष्ट नहीं था। कई संदेश और ईमेल हर रोज प्राप्त होते हैं और उनका जवाब केवल उसी प्रेषक को दिया जाता है जिसने वो सन्देश भेजा होता है, लेकिन सब के लिए यहां सेवा के बारे में बात करने के लिए हमें विशेष रूप से इस प्रेषक की असंतुष्टि कि भावना ने प्रेरित किया है। उसका यह भाव कि गुरूजी के पास आने वाले अन्य लोगों के जीवन में कई सकारात्मक बातें होती हैं तो सेवा करने के बावजूद, इस प्रेषक के जीवन में क्यों नहीं होती। शायद, हमें और अधिक समझने की आवश्यकता है। यह महसूस किया गया कि कई अन्य लोगों के मन में इसी तरह के प्रश्न हो सकते हैं जिन्हें वो व्यक्त करने में सक्षम नहीं हैं इसलिए इस बारे में ( प्रेषक का नाम लिए बिना ) यहाँ बात करने के बारे में सोचा।
हम ने पहले भी ‘सेवा’ के बारे में बात की है, लेकिन विस्तार से नहीं। यहाँ, हम कोशिश करते हैं।
हमें अपनी आत्मा के एक सबसे महत्वपूर्ण उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए इस दुनिया में पैदा किया गया है और वह है ‘मुक्ति’ (‘मोक्ष’)। इस से पहले कि हम मोक्ष के बारे में बात करें, यह जागरूकता अनिवार्य है कि ‘ भगवान ‘ मौजूद है। जो व्यक्ति ‘ भगवान ‘ के अस्तित्व में विश्वास नहीं करते हैं, उनके लिए ‘मोक्ष’ का भी कोई अर्थ नहीं है। मोक्ष अथवा ‘मुक्ति’ का अर्थ है हमारी ‘ आत्मा ‘ का ‘परमात्मा’ में विलय जिस से हम जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्त हो जाते हैं। जब हमारा सांसारिक ज्ञान ‘ भगवान ‘ के अस्तित्व को चुनौती देता है तो फिर आगे कुछ भी नहीं समझा जा सकता है। यहाँ यह कहना गौर मतलब होगा कि गैर-स्वीकृति होने से गैर-अस्तित्व होने का कोई रिश्ता नहीं होता।
हम ने (ब्लॉग में) पहले भी जीवन के इस ‘ उद्देश्य ‘ के बारे में बात की है तो हम फिर से विस्तार से इस बारे में बात नहीं करेंगे (यह पिछले ब्लॉग प्रविष्टियों में पढ़ा जा सकता है )। एक बार जीवन का उद्देश्य हमें समझ आ जाए तो आगे बढ़ना सरल हो जाता है। इसी कारण से मनुष्य योनि को मोक्ष का द्वार कहा गया है क्योंकि इस ज्ञान को अर्जित करने की शक्ति सिर्फ मनुष्य के पास होती है। हम यह भी जानते हैं, लेकिन अक्सर भूल जाते हैं कि हम एक भौतिकवादी दुनिया (नश्वर संसार) में रहते हैं। जो कुछ भी आज हमारा है, वो बीते हुए कल में किसी और का था और आने वाले कल में भी किसी और का ही होगा। हम अपने इस जन्म से परे कोई भौतिकवादी वास्तु नहीं ले जा सकते। जीविका कमाना और सामाजिक जिम्मेदारियों को पूरा करना महत्वपूर्ण है, लेकिन यह अंत नहीं है। जीवन में कुछ भी हासिल करने के लिए, हमें काम करने की जरूरत है, या दूसरे शब्दों में , कहें तो ‘कर्म’ करने की आवश्यकता है। यह ‘कर्म’ हम कैसे करते हैं यह बहुत आवश्यक है और हमारे यह कर्म ही ‘आत्मा’ के साथ यात्रा करते हैं।
‘कर्म’ – यह कई प्रकार के हो सकते हैं . अच्छे, बुरे या तटस्थ लेकिन यदि हमें कुछ भी प्राप्त करने की इच्छा है, तो हम कर्म करने के लिए बाध्य हैं। ‘कर्म’ केवल भौतिक दुनिया में हमारे अस्तित्व की ओर निर्देशित किया जा सकता है, अथवा यह हमारे प्राथमिक उद्देश्य की प्राप्ति की दिशा में भी निर्देशित किया जा सकता है, जो है – ‘मुक्ति’ । जो व्यक्ति दुनिया की भौतिकवादी प्रकृति के बारे में जागरूक हैं वो हमेशा ही मुक्ति प्राप्त करने के लिए कर्म करने की कोशिश करेंगे। ‘जागरूक’ शब्द का चयन विशेष रूप से इसलिए किया गया कि यह ज्ञान ज़्यादातर लोगों को होता है, लेकिन यह हमारे मन की गहराइयों में कहीं छिपा रहता है। निर्देशित प्रयास वही करता है जो ‘जागरूक’ होता है। अगला प्रश्न यह है कि हम कैसे चयन करें कि कौनसा कर्म हमें मुक्ति कि ओर ले जायेगा? क्या हम इतने जानकार हैं?
हम अपने विषय पे वापस आते हैं, जो है – सेवा।
अगर कोई हमारे यहाँ काम करता है तो वो भी हमारी सेवा ही करता है। इसी तरह से यदि हम किसी के यहाँ काम करते हैं तो हम भी उसकी सेवा करते हैं। लेकिन इस काम करने के बदले में हमें हर महीने वेतन मिलता है। इसलिए इसे सेवा नहीं, ‘नौकरी’ कहते हैं। यह एक व्यापारिक कर्म है। इस कर्म की ज़रूरत सिर्फ अपनी सांसारिक जरूरतों को पूरा करने के लिए है। फिर भी यह आवश्यक है क्यूंकि यह हमें हमारी बुनियादी जरूरतों को पूरा कर, हमें जीवित रखता है और जीवित रह कर ही हम ‘मुक्ति’ की पूर्ति की दिशा में कर्म कर सकते हैं। इसलिए यह कर्म हमारी आजीविका के लिए अनिवार्य तो है, किन्तु उस से अधिक कुछ नहीं। हमारी आजीविका प्राप्त करने के लिए हम जो कर्म करते हैं वो अच्छे भी हो सकते हैं और बुरे भी और इस प्रकार बनाया हमारे अच्छे और बुरे ‘कर्मों’ का संतुलन , हमारे भाग्य का फैसला करता है। जिस संतुलन के आधार पर हमें सुख या दुख , खुशी या दर्द , बहुतायत या शून्य , पारिवारिक सुख या द्वेष अथवा प्रेम या नफरत का अनुभव होता है।
यहाँ यह समझना अति आवश्यक है कि यदि हम सेवा (मानवता की सेवा) एक निश्चित इनाम की उम्मीद के साथ करते हैं, तो यह एक व्यावसायिक गतिविधि की तरह है। समय के साथ फल तो इसका भी मिलेगा (जिस प्रकार वेतन एक महीने के काम के बाद प्राप्त होता है) लेकिन किसे कितना मिलेगा यह उसके ऊपर ही निर्भर करता है। जैसे एक महीना काम करने के बदले में, किसी को वेतन के रूप में ५०,००,०००/- रूपये मिलते हैं और किसी को मात्र ५०० रूपये या इन दोनों राशियों के बीच की कोई भी राशि। यह अंतर दो प्रमुख कारणो की वजह से होता है प्रत्येक व्यक्ति के प्रभावी ढंग से अपने काम को करने की क्षमता और उस व्यक्ति की अपनी मेहनत से विकसित किया गया उसका कौशल। यदि यह समझने के बाद भी हम यह सवाल उठाएं कि दो लोगों को एक महीने बराबर समय लगा कर काम करने के बावजूद अलग-अलग वेतन क्यूँ मिलता है, तो यह हमारी अपनी अल्पदृष्टि है। इस तरह की बातों में समय बर्बाद करने के बजाए, हमें स्वयं के लिए बेहतर कौशल प्राप्त करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। हमें यह समझने की आवश्यकता है कि अपने जीवन के असल उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए हमें कर्मों के व्यापार की जरूरत नहीं है। हमें अपनी सेवा कुछ प्राप्ति की इच्छा के बिना करनी चाहिए जिस से हमारे कर्मों का संतुलन सही हो सके
और एक दिन हम अपने जीवन के उचित उद्देश्य की पूर्ती कर सकें।
इसे नि:स्वार्थ अथवा निष्काम सेवा के रूप में जाना जाता है। जब हम सेवा के बदले में कुछ भी पाने की उम्मीद नहीं रखते और सिर्फ अपनी ‘सेवा’ पर ध्यान केंद्रित करते हैं। इस पूरे वक्तव्य में एक अन्य पहलू भी है। हम अपने प्रत्येक कार्य की बारीकी और परिणामो को समझ सकें, यह लगभग असंभव सा है। क्या इसका यह मतलब है कि हमारे यथार्थवादी कर्म भी हमें अपने लक्ष्य कि ओर नहीं ले जायेंगे? हमारे कार्यों के व उनके परिणामो के ज्ञान के अभाव में ऐसा ही होता है। ऐसे में दो ही चीज़ें सम्भव हैं। या तो सभी ज्ञान प्राप्त कर लिया जाये, या उसका अनुसरण किया जाये जिसके पास यह ज्ञान है।
हमारे जीवन में यही ‘गुरु’ का महत्व है। जब हम अपने ‘ गुरु’ की शरण में पहुँच जाते हैं तो वो हमें सही दिशा देते हैं और साथ ही यह निश्चित करते हैं कि हमारे प्रयास हमें एक दिन मुक्ति की ओर ले जायेंगे। ‘गुरु’ और ‘शिष्य’ का यह रिश्ता जन्मों की सीमा से परे होता है और निरंतर चलता है, जब तक गुरु अपने शिष्य को उसके गंतव्य तक पहुंचा नहीं देते। हमारे गुरु ही हमें इस भौतिकवादी दुनिया के मायाजाल रुपी भ्रम से बाहर ले कर आते हैं और नि:स्वार्थ सेवा की सही राह दिखाते हैं। उनकी कृपा से ही हमें ‘धैर्य’ रुपी एक और महत्वपूर्ण गुण प्राप्त होता है।
जब हम गुरुजी की ‘शरण’ में आते हैं, तब हमें अपने जीवन की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए गुरुजी से कुछ भी मांगने में संकोच नहीं करना चाहिए। कुछ व्यक्ति उनसे जल्दी ही बहुत कुछ प्राप्त कर लेते हैं और कुछ को अधिक समय लगता है फिर भी उतना नहीं ले पाते। यह हमारे विश्वास और आत्मसमर्पण पर निर्भर करता है। जीवन में कुछ भी हासिल करने के लिए अपने गुरु से आशीर्वाद मांगने में कुछ गलत नहीं है, लेकिन हमें सेवा को कुछ प्राप्ति की इच्छा के साथ नहीं जोड़ना चाहिए। जब हम निष्काम सेवा करते हैं, तो आध्यात्मिक उन्नति के साथ दुनियावी तरक्की भी अपने आप ही होगी। लेकिन सेवा को किसी ख़ास भौतिक इच्छा की प्राप्ति के साथ जोड़ना गलत होगा। इससे हम वास्तविकता में उस लाभ को कम ही करते हैं। यह भी निराशा का एक कारण है क्यूंकि यह तो पहले ही कहा जा चुका है कि प्राप्ति तो अपने कौशल और क्षमता अर्थात विश्वास और आत्मसमर्पण के अनुसार ही होगी। व्यक्ति प्रायः अपने सामर्थ्य को अधिक ही आंकता है और फिर उसके प्रतिरूप परिणामो को ना पा कर कुंठित होता है। यह सेवा करने का उचित तरीका कदापि नहीं है। सच तो यह है कि गुरूजी हमारी बुनियादी ज़रुरतों को इसी लिए पूरा करते रहते हैं, ताकि हम सिर्फ उन्हें पूरा करने में अपने सारा समय न गवां दें और अपने वास्तविक लक्ष्य को प्राप्त करने पर अधिक ध्यान केंद्रित कर सकें। हम में से कई लोग वहीँ पर रुक जाने की गलती करते हैं।
अब वापस संदेश के प्रेषक के मूल प्रश्न पर आते हैं कि, “सेवा का उद्देश्य क्या है?” ‘सेवा’ का उद्देश्य इस भौतिक दुनिया से खुद को आजाद कराने के लिए है । घृणा, ईर्ष्या और अहंकार की भावना से खुद को मुक्त करने के लिए है। अपनी ऊर्जा को अपने गुरु की दिखाई गयी दिशा में केंद्रित करने के लिए है ताकि एक दिन हम वो हासिल कर सकें जो हमारे गुरु हमारे लिए चाहते हैं – जो हमारे जीवन का एकमात्र उद्देश्य है।
गुरुजी ने हमें, हमारे परम लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सबसे छोटा व आसान रास्ता दिया है. इसमें तीन चीजें शामिल हैं और तीनों साथ में ‘भक्ति’ का एक पूर्ण रूप हैं. 1 . जाप, 2 . सेवा और 3 . ध्यान
‘जाप’ – गुरूजी द्वारा दिए गए मंत्र का जप करना। मंत्र जप का कोई निश्चित तरीका है या समय नहीं है. यह जप दिन भर में किसी भी समय मन में जारी रख सकते हैं।
‘सेवा’ – नि:स्वार्थ सेवा। यह भावना गुरुजी के स्थान की परिधि के बाहर भी जीने के एक तरीके के रूप में हमारे साथ जारी रहनी चाहिए।
‘ध्यान’ – एक दिन में कुछ मिनट के लिए भी ध्यान में बैठना पर्याप्त है। अपने मन को अविचारशीलता की ओर ले जाते हुए उनसे जुड़ने का प्रयास। यह आसान नहीं है किन्तु प्रयास करना ही पर्याप्त है।
‘सेवा’ हमारी यात्रा का एक अभिन्न और महत्वपूर्ण अंग है, फिर भी, ‘मोक्ष’ प्राप्ति की उम्मीद रखना भी तो एक उम्मीद रख कर सेवा करने के बराबर ही है। गुरुजी लगातार ‘सेवा’ करते थे और आज भी करते हैं और वो भी किसी से कोई उम्मीद किये बिना। अपने शिष्यों को भी उन्होंने ऐसा ही करने के लिए प्रेरित किया है। वास्तविकता तो यह है कि बिना किसी से कुछ लिए अथक सेवा करने के बाद भी कुछ लोग ही आकर पूछ लेते हैं कि गुरूजी के पास आकर मैंने क्या प्राप्त किया? जब कोई व्यक्ति सेवा को प्रत्यक्ष भौतिक परिणाम या प्रत्यक्ष आध्यात्मिक उन्नति से जोड़ने लगता है तो निराशा का होना स्वाभाविक है क्यूंकि इसके परिणाम की गणना करने का कोई पूर्व निर्धारित सूत्र नहीं होता। ऐसे व्यक्ति सेवा से हो रही स्वाभाविक आध्यात्मिक उन्नति की ओर ध्यान नहीं देते क्यूंकि इसे दिन प्रतिदिन में महसूस नहीं किया जा सकता। गुरुजी ने हमेशा ‘नि:स्वार्थ सेवा’ करना सिखाया है , इसलिए इसे किसी भी परिणाम की परिधि में बांधना गलत है। ‘सेवा’ का पूरा उद्देश्य ही इस सोच से बदल जाता है।
तो फिर सेवा क्यूँ करनी चाहिए? सिर्फ अपने गुरु के प्रति अपने प्रेम के लिए। क्यूंकि वो हमसे यही अपेक्षा रखते हैं और उन्होंने हमें यही सिखाया है। अब तक हमने जो भी कहा, सुना या सीखा, वह सिर्फ इस सीढ़ी का पहला कदम है, क्यूंकि इस सफ़र की सिर्फ शुरुआत ही इस ज्ञान से होती है लेकिन इस सफ़र का संपूर्ण आनंद लेने के लिए इस ज्ञान को भी पीछे छोड़ना पड़ता है। अपने मन की सलेट को बिलकुल साफ़ रखें, जिस से ‘वो’ उस पर लिख सकें। यह विश्वास ज़रूरी है कि ‘वो’ हमें हमारी मंज़िल तक पहुंचाएंगे और रास्ते की हमारी ज़रूरतों को भी पूरा करेंगे। जब सब कुछ उन पर छोड़ दिया जायेगा, तब सेवा बोझ प्रतीत ना होकर हमें आनंदित करेगी – और येही सेवा करने का एकमात्र तरीका है।
Nishkaam Seva Karo…. Jai Gurudevji ki
Jai Gurudev ji
“Om Namho Shiv Om Om Namho Gurudev”
Sewa kya h aaj maine ye jana,
Ni-swarth bhav se karne par hi
moksh ko hai paana,
Agar sansaari jeewan ke sukh bhogane ke khatir karoge “SEWA”,
To vanchit rah jaaoge tum karne ko ‘Guru charno ki SEWA’
“Jai Gurudev ji”
Jai Gurudev ji
“Om Namho Shiv Om Om Namho Gurudev”
Sewa kya h aaj maine ye jana,
Nishwarth bhaw se karne par hi mokas ko h paana,
Ager sansaari jeewan kye sukhbhogan khatir karogye “SEWA”,
To vanchit rahe jaaogye tum karneko ‘Guru charno ki SEWA’
“Jai Gurudev ji”
Jai Gurudev Jai Mata Ji
Jai gurudev ji…
Jai Gurudev
Jai Gurudev, Beautufully portrayed, An eye- Opener For ALL.
Jai Gurudev Ji
Jai gurudev
JAI GURUDEVJI
Jai gurudev ji ki
Ati sunder sewa ka bhav aaj mila
Guruji ke vicharo ka samporan lekha mila
Jiwan ki sahi raah ka aaj byura mila
Om namah shivaye om namah gurudev
“तो फिर सेवा क्यूँ करनी चाहिए? सिर्फ अपने गुरु के प्रति अपने प्रेम के लिए… ” Can anything be more beautiful in the world! Doing something out of nothing but love for your Guru. So beautifully felt and explained. Thnx for posting!
Wherever we may be, whatever profession we may be pursuing, all our actions, our dealings with other people, can be undertaken as our Guruji wants, and not for any other reason, just love for Him. No fear of retribution or Karma. Just Love, pure and simple! I am in a workplace where I deal with people all day. Sometimes, I tend to get irritated but then I think of Him and get soft and smiling again. I never get scared that if I get angry or lose my cool, something bad will happened. It’s just that I feel so much love for Guruji, that I want him to be proud of me every second that I live!
Your thoughts express immense clarity and awareness. I have read through the entire blog and feel the words are my own. They reach me so clearly and completely.
Thank you for this wonderful website.
Jai Gurudev!
Jai guru dev
Jai guru dev mai vi guru ki seva karna chata hu kuch samjh me nhi aa RHA hai kiske pass jau..plz
Jai guru dev
Om namoh shiv om om namav gurudev.
Sewa- niswarth bhav se Ki gayi Sewa hi asli
Sewa hai..guruji aapki Sewa main jo anand hai
Wo duniya Ki sabse badi daulat hai jo aapne
Ye mauka hamay pradan kiya. Aapka bahut
Dhanyawad…
Can guruji come back again in human form ?