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ज्ञान – शब्दों का संग्रह… या उससे परे
हम चाँद की छवि उसी जल में देख सकते हैं, जो जल शांत हो। स्थिर हो। अस्थिर जल में चाँद प्रतिबिंबित नहीं हो पाता।
यही समस्या होती है मन की। मन कभी भी शांत नहीं रह पाता, स्थिर नहीं रह पाता। जहां शान्ति नहीं, वहां कुछ भी नहीं रूकता। समुद्र की लहरों की तरह विचारों का उपद्रव मन को सदा अस्थिर रखता है। कुछ भी सुनने या समझने के लिए, मन का मौन रहना आवश्यक है। लेकिन मन मौन रहना नहीं चाहता। वो लगातार कुछ न कुछ कहता रहता है। प्रति पल मन पर शब्दों का आक्रमण चलता रहता है। यही आक्रमण है जिसके कारण व्यक्ति कभी भी शब्दों के परे नहीं जा पाता जहां जीवन की सत्यता का बोध उसकी प्रतीक्षा कर रहा होता है।
जिस मन पर शब्दों का आक्रमण हो, वो निरंतर एक खोज में रहता है। कभी शास्त्रों में, कभी पर्वतों पर, कभी समुद्र के किनारे, कभी मंदिरों में, कभी वन में और कभी तीर्थ स्थानों पर। निरंतर खोज के बावजूद जो वो खोज रहा होता है, वो कभी मिलता नहीं। क्यूंकि मन तो स्थिर रहा ही नहीं। फिर वो व्यक्ति जहाँ भी रहे, जहाँ भी जाये और जहाँ भी खोजे, कुछ नहीं बदल पाता।
जो व्यक्ति सिर्फ शब्दों पे ध्यान देता है वो उनके निहित अर्थ से वंचित रह जाता है। शब्दों की सत्यता को समझने के लिए, उनकी अनुभूति के लिए मन में शान्ति और रिक्तता अनिवार्य हैं। शून्यता भी अनिवार्य है। मन में इतना स्थान होना चाहिए कि वो शब्दों के परे पहुँचने की यात्रा कर सके। लेकिन, मन कभी शून्य या रिक्त रहता नहीं है। वो सोचता है की शब्दों का संग्रह ही ज्ञान प्राप्त करना है। यह सोच कर कि सिर्फ शब्दों से ही ज्ञान है, वो शब्दों का संचय करता रहता है।
मन यह नहीं जानता कि परम ज्ञान तो शब्दातीत है। एक अनुभूति है, जिसे शब्दों से बांधना असंभव है।
शब्दों का अपना मूल्य क्या है? कुछ भी नहीं।
जब भी कोई ईश्वर का नाम लेता है, तो क्या ईश्वर मात्र एक शब्द में ही सीमित हो जाते हैं? नहीं। यहां शब्द सत्य नहीं। सत्य तो है ईश्वर की वो अनुभूति जो उस शब्द में विद्यमान है। यदि शब्द ही सत्य होते, तो सिर्फ मुंह से “भोजन” कह देने से व्यक्ति का पेट भर जाता। उसकी भूख शांत हो जाती।
इसीलिये, महत्व शब्दों का नहीं, महत्व है उस अनुभूति का जिसका सम्बन्ध उन शब्दों से है। यदि शब्द नहीं भी होते, तो भी ईश्वर होते। यदि शब्द नहीं भी होते, तो भी सुख और दुःख की अनुभूति वैसी ही होती, जैसी हम शब्दों में बताने की कोशिश करते हैं। यदि शब्द नहीं भी होते, तो भी जल की शीतलता की अनुभूति होती। सूरज की गर्मी और चन्द्रमा की ठंडक की अनुभूति होती। यदि शब्द नहीं भी होते, तो भी प्रेम की अनुभूति होती।
यदि ये अनुभूतियाँ ही न हों, तो शब्दों का लाभ ही क्या? शब्दों से तृप्त हो जाना, ज्ञान का अंत नहीं, अज्ञानता का प्रारम्भ है।
ज्ञानी वही है, जिसके पास अनुभूतियाँ हों, अनुभव हो.. और उसके लिए मन को शांत व रिक्त तो करना ही पड़ेगा।
दो व्यक्तियों का आपस में सहमत होना ज़रूरी नहीं होता। ना ही किसी से अपनी तुलना करना उचित होता है। हर व्यक्ति कि यात्रा भिन्न होती है। उनके अनुभव भी भिन्न होते हैं। इसलिए हर व्यक्ति का दृष्टिकोण भी भिन्न होता है और प्रतिक्रियाएं भी। यह भिन्नता ही हर व्यक्ति के व्यक्तित्व की विशेषता होती है। व्यक्ति को अपनी भूलों को स्वीकार कर के, उनसे सीखना चाहिए। यह जीवन पथ पे आगे बढ़ने का बहुत महत्त्वपूर्ण मंत्र है।
हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि शब्दों से उत्पन्न अर्थ कष्ट दायक भी हो सकता है इसलिए किसी के लिए भी कटु-वचनों से दूर रहना चाहिए
अतीत की बुरी स्मृतियों को भूलने का और भविष्य से पैदा हो रही चिंताओं को त्यागने का प्रयास करने के साथ ही, वर्तमान में पैदा हो रहे विचारों में भी शब्दों के अंतराल को पहचानने का प्रयास करते रहना चाहिए। यही प्रयास वो शून्यता ला सकता है, जो हमारे मन को शांत रख सके। उसी मौन से मन को स्थिरता भी प्राप्त होगी जो जीवन पथ पर अग्रसर होने में सहायक होगी।
गुरुजी ने इसे और भी सरल बना दिया है। उन्होंने कहा, ” मुझ पर छोड़ दो” । यदि हम यह विश्वास रख सकें कि हमारे जीवन में जो कुछ भी हो रहा है, उससे बेहतर नहीं हो सकता तो हमें मन की उस शान्ति की प्राप्ति हो सकती है जो हमारे जीवन के लिए अनिवार्य है। सिर्फ आध्यात्मिक उन्नति के लिए ही नहीं, एक सफल मानव जीवन जीने के लिए भी।
I totally agreed that Leave everything on Guruji, but sometimes you are in a situation as I am that I am struggling to complete my education, I didn’t have any job at the age of 30 and sometimes your questions kept unanswered, I am ok with that also but pressure of people by whom you are surrounded make you impatient and anxious that what will happened to me.
Hi Mohit, I was in a similar situation some time back. I was very worried too. I was jobless and I had no savings to even pay my house rent. I brought this problem to Guruji’s notice. In the next two days I got a project and an advance for the same.
He always takes care of His children. We realize it only after we pass the problem.
I worried because may be I had lost faith. But if I had faith, then I might not have worried. And my mind would have been calm.
I pray to Guruji that He gives you and me enough faith that we don’t have to worry anymore.
Thank you! I really really needed to hear this today. Thank you once again for this reminder!! Jai Gurudev!! 🙂
बहुत बहुत धन्यवाद गुरूजी सत्य की राह दिखाने को आपके वचनो से इस पापी और अस्थिर मन को बहुत सुकून मिला इतनी कृपा करना की ये वचन हमारे मन में सदा बनें रहे ये वरदान देना।
सदा अपने बच्चों पे अपनी दयादृशटि रखना आपकी कृपा के बिना हम कल भी शून्य थे और आज भी….
ॐ नमोः शिव ॐ।
ॐ नमोः गुरूदेव ॥
Aapki sada hi jai aapke is Bache se koi galti ho to chama kar de apni sharan me lele aapke darbar aaya hu bolo Sache darbar ki jai om namo sheo om on namo gurudeo