97. जब गुरुजी ने गुड़गाँव स्थान के लिए प्लॉट नम्बर 702, अलॉट कराया।

गुरूजी ने फैसला किया कि वे अपना घर बनायेंगे ताकि वहाँ सेवा कार्य में कोई विघ्न न डाल सके। जैसा कि बड़े वीरवार के दिन, शिवपुरी के किराये के मकान…

96. जब गुरुजी ने मुझे सिंक की डाई बनाने का डिज़ाईन दिया।

मैंने अपनी फैक्ट्री में, अपनी समझ के अनुसार, सिंक की एक डाई बनाई। जब उसको हाईड्रॉलिक प्रैस पर लगाकर चलाया तो वह असफल हो गई। मेरे मुख्य टेक्नीशियन ने बहुत…

95. जब गुरुजी का एक हाथ पेट और दूसरा कमर के नीचे रखते ही, पेट दर्द गायब हो गया।

एक बार मैं और मेरे अलावा श्री आर. पी. शर्मा, एफ. सी. शर्मा जी व नदौन के संतोष तथा और भी कई शिष्य, रात को गुड़गाँव स्थान पर रुके। करीब…

94. भक्तों के माँगने पर गुरुजी ने अपने पर्स से पैसे निकाल कर उन्हें दिये।

गुरुजी स्थान के मुख्य द्वार पर खड़े थे और स्थान पर बैठे लोग, एक-एक करके गुरुजी को अपनी-अपनी समस्याएं बता रहे थे और गुरुजी उन्हें आशीर्वाद दे रहे थे। तभी…

93. जब करवाचौथ के दिन गुरुजी ने, माताजी के लिए मिट्ठाईयाँ खरीदी।

गुरुजी, अपने ऑफिस में थे और सुरेन्द्र तनेजा भी उनके साथ था। गुरुजी के सहकर्मियों ने गुरुजी से तीन सौ रुपये कमेटी (Committee Contribution) में, उनके मासिक अंशदान के लिए…

92. गुरुजी की टाँग में बाल-तोड़ था जिसका मुझे ज्ञान नहीं था और संयोगवश, मैं उसी टाँग को दबा रहा था।

दरियागंज में मेरा एक शोरूम था। जहाँ बर्तन तथा अन्य सामान का व्यापार होता था। कई बार गुरुजी की विशेष कृपा होती और वे हमें आशीर्वाद देने के लिए, वहीं…

91. जब सुरेन्द्र तनेजा को अपने पुत्र का मुंडन कराने की इजाजत देने से गुरूजी ने मना कर दिया।

सुरेन्द्र तनेजा के बड़े भाई ने अपने तथा सुरेन्द्र के बेटे का मुन्डन समारोह करने का प्रोग्राम बनाया और उसके लिए दिन भी तय कर दिया। सुरेन्द्र इस समारोह के…

90. जब गुरुजी श्रीनगर, कश्मीर गये।

गुरुजी, श्रीनगर में थे और उनकी जीप मे अचानक कोई खराबी आ गई। अतः हम, लाल चौक पर स्थित एक मोटर पार्टस की दुकान पर गये। हमने दुकानदार से अपनी…

89. जब संतलाल जी ने गुरुजी से गुड़गाँव वाले फार्म में आलू की पैदावार के बारे में बात की।

गुरुजी अपने कमरे में बैठे थे, मैं भी अन्य शिष्यों के साथ उनके पास बैठा था। संतलाल जी, गुरुजी के प्रिय शिष्यों में से एक हैं। जब गुरुजी प्रसन्न-मुद्रा (Light…

88. जब मैंने अपने आप को भूख से व्याकुल महसूस किया।

प्रत्येक बड़े-वीरवार से पहले आने वाले बुद्धवार रात को माता जी, सभी शिष्यों और सेवादारों को स्वयं खाना खिलाती थी। मैं भी रात के समय गुड़गाँव पहुंचा और माताजी को…