एक बार की बात है, गुरूजी अपने गोल मार्किट वाले क्वॉटर के बाहर खड़े थे कि अचानक कुछ लोग आये और गुरुजी से, अपने किसी व्यक्ति के बारे में बताने लगे जो किसी अनजान बीमारी से ग्रसित था। गुरजी ने मुझे आदेश दिया—‘ ‘राज्जे, तुम इन लोगों के साथ अस्पताल जाओ और उस व्यक्ति को जो वहाँ ICU विभाग में है, उसे ”जूठा जल” पिलाओ।” मैं उन लोगों के साथ अस्पताल गया और वहाँ ICU के प्रवेशद्वार पर ही मुझे एक नवयुवती मिली, जो अपनी साड़ी का पल्लू फैलाकर मुझसे बोली—- ”मेरा सुहाग मुझे दान दे दो।”
मैंने उसकी तरफ देखा और अपना हाथ उसके सिर पर रखा। एक दूसरा व्यक्ति, जो उसके पीछे ही खड़ा था, बोला कि डॉक्टरों को समझ नहीं आ रहा है कि उसकी बीमारी का क्या कारण है और उसने बताया कि इसका शरीर, जैसे निचुड़ता जा रहा है और दिन-ब-दिन कमजोर होता चला जा रहा है। डॉक्टरों का कहना है कि ये सिर्फ पन्द्रह दिन ही और जी पायेगा, क्योंकि अविश्वस्नीय रुप से इसका दिल और फेफड़े अभी काम कर रहे हैं।
मेडिकल सांईस क्या कहती है, यह मैं नहीं समझ सका। मुझे तो सिर्फ इतना याद था कि गुरुजी ने जो कहा था, वो मैंने करना है।
जब मैंने में ICU में प्रवेश किया, तो देखा कि सामने एक सुन्दर युवक बिस्तर पर सीधा लेटा हुआ था। जैसा गुरुजी ने आदेश दिया था, वहाँ मैंने एक पानी से भरे बीकर का इंतजाम किया और उसे जूठा करके, बाकी उसके मुँह के साथ लगा दिया और उसे वह पी गया। मैं गुरुजी के पास वापिस आ गया लेकिन वहाँ गुरुजी से मरीज़ के पास जाने या उसके बारे में कोई बात नहीं हुई।
कुछ महीने बीत गये। एक बार मुझे बैंगलौर जाना पड़ा। एक दिन बैंगलौर के अशोक, कार में मेरे साथ थे कि अचानक एक दूसरी कार ने आकर हमें रोका। उस कार से एक नवयुवती उतरी और तेजी से हमारी तरफ आने लगी। मैंने अपनी कार की खिड़की खोली और उसे आशीर्वाद दिया।
वह बोली— ”गुरुजी, आपने मुझे पहचाना नहीं?” वह फिर बोली— ”….मैं वही हूँ जिसने आपसे, अपने पति की जिन्दगी माँगी थी और आपने उसे बचा लिया था।
वह अब बिलकुल ठीक हैं और उस कार में है। तब मुझे याद आया कि हाँ जब मैं ICU में गया था, तब उसे वहाँ देखा था। वह हमें अपने घर में आकर आशीर्वाद देने के लिए प्रार्थना करने लगी। मैं भी व्याकुल हो उठा, उस जोड़े को देखने के लिए कि जिस परिवार पर गुरुजी ने इतनी अपार कृपा की थी।
गुरुजी क्या सोचते हैं उन लोगों के लिए, जो उनके पास आते हैं और उनसे अपना दुः ख दूर करने के लिए प्रार्थना करते हैं, वह भी उस समय, जब उनके पास किसी का भी सहारा नहीं होता। चाहे वह मेडिकल रुप में हो या पैसे की कमी की वजह से। गुरुजी अधिकारिक रुप से, लोगों के सभी कार्य स्वयं कर देते हैं या फिर शिष्यों से करा देते हैं। वह हर असम्भव कार्य भी बड़ी सहजता से कर लेते हैं।
मैं गुरुजी से अपने मुख से, दिल से और आत्मा से प्रार्थना करता हूँ
कि वे हमेशा, इसी तरह सभी पर अपने आशीर्वादों की वर्षा करते रहें।