महागुरुजी के एक शिष्य की चार बेटियाँ हैं और सभी का गुरुजी में, दृढ़ विश्वास है। उस शिष्य की बड़ी बेटी, एक बार बहुत अधिक बीमार पड़ गई। आम तौर से बीमार पड़ने पर गुरुजी उन्हें लौंग, इलायची व जल देते और उसकी परेशानी दूर हो जाती थी।
लेकिन इस बार कुछ ऐसा हुआ कि उसे बुखार आया और लगातार दस बारह दिन तक ठीक नहीं हुआ। उसके इस लगातार बुखार को देखते हुए, उस शिष्य के बड़े भाई, गुरुजी के उस शिष्य के पास आये और बोले, “जब बुखार ठीक नहीं हो रहा है तो तुम, डॉक्टर के पास जाकर उसकी सलाह क्यों नहीं लेते?”
तो उस शिष्य ने जवाब दिया, ”…गुरुजी अपने आप ठीक कर लेंगे।”
जब उस शिष्य के बड़े भाई ने कुछ दिनों के बाद, दुबारा उनकी बेटी के बारे में पूछा, तो शिष्य ने कहा,
”…उसे अपने गुरुजी पर पूरा विश्वास है वह दो-एक दिनों में अपने आप उसे ठीक कर देंगे।”
समय बीतता गया और इसी तरह से तीन महीने का समय निकल गया। तब उस शिष्य के बड़े भाई फिर आये और इस बार अपनापन जताते हुए बोले, ”मैं इसे अस्पताल ले जा रहा हूँ या फिर डॉक्टर को घर बुलाता हूँ। मैं भी घर में बड़ा हूँ और मेरा भी फर्ज बनता है कि मैं बच्चों का ध्यान रखू ।’
उनका एक संयुक्त परिवार था और जाहिर है बड़ा होने के नाते, उनका ये सब कहने और करने का हक बनता था। उनका एक बहुत बड़ा दुमंजिला घर था। उसमें चारों भाईयों का परिवार संयुक्त रुप से रहता था। गुरुजी के शिष्य ग्राऊन्ड फ्लोर पर रहते थे।
मामला गम्भीर था। एक तरफ तो गुरुजी में विश्वास और दूसरी तरफ पूरे परिवार का दबाव। गुरु शिष्य अपने बड़े भाई से पन्द्रह साल छोटे हैं। अतः उन्होंने अपने भाई से प्रार्थना करते हुए कुछ और समय माँगा। लेकिन उनके भाई किसी भी तरह से तैयार नहीं हुए। जब वे अपने छोटे भाई को लड़की पर अपनी इच्छा थोपने का दोषी ठहराने लगे कि तुम ही उसे डॉक्टर के पास नहीं ले जाना चाहते तो गुरू शिष्य ने अपने भाई को इसके लिए अपनी बेटी से ही बात करने को कहा।
उनके बड़े भाई ने उस लड़की से बात की तो उनकी बेटी बोली, ”बड़े पापा मैं जानती हूँ कि मैं बीमार हूँ। यदि गुरुजी मुझे ठीक नहीं कर सकते, ….तो मैं भी जीने के लिए इच्छुक नहीं हूँ।”
शिष्य के बड़े भाई, उस बच्ची की यह बात सुनकर एकदम स्तब्ध रह गये। उन्होंने यह सोचा भी नहीं था कि इतनी कम उम्र में भी वह बच्ची गुरुजी में इतना दृढ़ विश्वास रखती होगी…!! वे आगे कोई बहस किये बिना, वहाँ से चले गये। उन्होंने वहाँ से जाने के बाद, अपने अन्य दोनों भाईयों को भी लड़की को मनाने के लिए भेजा। उन दोनों ने भी लड़की को बहुत समझाने की कोशिश की, लेकिन जब वह इस कार्य में नाकाम रहे, तो आखिर में लड़की से बोले— ”अगर तुम्हें गुरुजी में इतना ही विश्वास है, तो ठीक है बेटा, हम भगवान से यही प्रार्थना करते है कि वह तुम्हें शक्ति दे और अपने गुरू में तुम्हारा विश्वास कायम रखे।
इसी तरह दो महीने और बीत गये। अब तो यह हालत हो गई कि यदि उस लड़की को शौच आदि के लिए भी जाना हो तो उसके पिता उसे अपनी बाँहों में उठा कर ले जाते और वापिस लाकर बिस्तर पर लिटा देते। अब तो अपने पैरों पर भी खड़ा होना उसके लिए मुश्किल था। वह बहुत अधिक कमजोर हो चुकी थी।
आखिर…. वह सुनहरी सुबह आ ही गयी, जिसका इतने लम्बे समय से इंतजार था। सुबह-सुबह गुरुजी उसके कमरे के जाली वाले दरवाजे के बाहर खड़े थे। उसने जैसे ही उन्हें देखा अपने पिता को हिम्मत बटोरते हुए पुकारा…
“”पा…पा…, गुरुजी…!!”
गुरुजी का शिष्य, दूसरे कमरे से दौड़ता हुआ आया और उसने दरवाजा खोला। जैसे ही गुरुजी अन्दर आये, वह लड़की उठी और उसने गुरुजी की तरफ कदम बढ़ाये। परन्तु जैसे ही गुरूजी के पास पहुंचकर, वह गिरती, गुरूजी ने अपनी बाँहों का सहारा देकर, उसे संभाल लिया और फिर लिटा दिया।
गुरुजी ने अपना हाथ उसके माथे पर रख दिया तथा मुस्कुराते हुए उस लड़की को देखा। उस लड़की की आँखें खुः शी से चमक उठी और उसका चेहरा भी चमकने लगा। वह लगातार बस गुरुजी को देखे जा रही थी और बार-बार यही कहे जा रही थी—
“गुरूजी, आप आ गये?”
और गुरुजी, उसे आशीर्वाद पर आशीर्वाद दिये चले जा रहे थे। उसे परम आनन्द की अनुभूति, महसूस हो रही थी।
एका-एक गुरुजी उठे और हिमाचल प्रदेश अपने ऑफिश्यिल टूअर पर जाने के लिए अपनी जीप की तरफ चल दिये। उनके शिष्य भी गुरुजी के पीछे-पीछे चल दिये। जब गुरुजी अपनी जीप में बैठ गये और उन्होंने पीछे मुड़कर देखा तो वह लड़की अपने बगीचे में, बस दूर खड़ी गुरुजी के दर्शन किये जा रही थी और गुरुजी ने भी उसे दूर से देखा और अपने शिष्य को आदेश दिया—
”बेटा, जाओ और उसे संभालो, चूंकि जैसे ही मेरी जीप उसकी आँखो से औझल होगी, वह वहीं पर गिर पड़ेगी।”
और ठीक वैसा ही हुआ जैसा गुरुजी ने कहा था। तब उनके शिष्य ने उसे सहारा दिया और गिरने से बचाया। उस लड़की का बुखार ठीक हो गया और उनकी लड़की दिन-ब-दिन ठीक होने लगी। बाद में उस शिष्य को पता चला कि जैसे ही गुरुजी, उनके घर से बाहर निकले, उनकी बेटी तो ठीक हो गई। लेकिन बड़ी अजीब बात हुई, गुरुजी की अपनी बड़ी बेटी रेनू, उसी दिन बीमार पड़ गई और उसे भी ठीक होने में बहुत समय लगा।
अब सोचो, देखो और समझने की कोशिश करो। अपने विवेक का इस्तेमाल करके, गुरूजी को पहचानने की कोशिश करो। सोचो कि पाँच छ: महीने की लम्बी बीमारी, गुरुजी ने कैसे एक मिनट मे, ठीक कर दी।
गुरूजी कौन हैं?
पाँच छः महीने की लम्बी बीमारी, गुरुजी के कुछ मिनटों के दर्शन देने से ही, दूर हो गई…?
हर किसी का दिमाग, पता नहीं कहाँ-कहाँ की और कैसी-कैसी बातें सोचता रहता है। क्योंकि, उसके लिए तो कैसी भी कोई सीमा है ही नहीं।
जब बड़े-बड़े साधु और सन्त भी इसे सीमा में बाँधने में असमर्थ रहे हैं, तो इसलिए सिर्फ यहाँ एक ही रास्ता है, कि गुरुजी के प्रति समर्पण कर दो। एक वो ही है, जो इस दिमाग पर काबू पा सकते हैं और आप एक नियन्त्रक की तरह नहीं एक मित्र की तरह ही इसका इस्तेमाल कर सकते हैं।
इसलिए इसमे दिमाग लगाने की जरुरत नहीं है कि गुरुजी कौंन हैं… और वह कैसे कर सकते हैं..?, ऐसा तो केवल भगवान कर सकता है। अतः उचित यही है कि यह बात गुरुजी के कान में डाल दो और उत्तर की प्रतीक्षा करो।
उपरोक्त उपकथा, उस व्यक्ति को पूर्णरूपेण समझ आयेगी, जो पाठक इस आध्यात्मिक तथ्य को जानने के लिये महत्वाकांशी है।
गुरूजी कहते हैं— कि प्यार और लोगों की सेवा के लिये, अपने दरवाजे हमेशा खुले रखें। ‘गुरू’ को मिलने के उपरान्त, न जाने इस आध्यात्मिक-ज्ञान को जानने की आपकी बारी कब आ जाये…? इसलिए आप प्यार से लोगों की सेवा में लगे रहिए। अपनी एक पारिवारिक जिन्दगी जीते हुए, ईमानदारी से अपना काम करते हुए तथा अपने परिवार के प्रति, जो कुछ संसारिक जिम्मेदारियाँ हैं, वह भी बड़ी नम्रता से निभाते हुए, तुम मेरा इन्तजार करो।