कुछ दिन बाद गुरुजी, दुबारा मुम्बई गये और यश सेठी के इलाज को आगे बढ़ाया। इस बार वे अपने साथ आर. पी. शर्मा जी व कुछ दूसरे शिष्यों को भी ले गये थे। करीब एक महीने के बाद, गुरुजी फिर गये और एक रात गुरुजी ने यश से पूछा, “….यश, क्या तुम अपने पैरों पर खड़ा होना चाहते हो?” अब तक यश ने बोलना शुरु कर दिया था। वह बोला, ”….क्या ये सम्भव है, गुरुजी?” गुरुजी ने उसके, हाथ पकड़े और बिस्तर से उठा कर खड़ा कर दिया—यह क्या—? …अगले ही पल, यश खड़ा हो गया।। गुरूजी ने यश को आदेश दिया कि तुम किसी को भी नहीं बताना कि तुम खड़े हो सकते हो। कल से मैं, तुम्हें चलाऊँगा। ….यह विश्वास करने लायक बात नहीं थी जो कुछ गुरुजी ने किया। यश जोर-जोर से रोया, लेकिन यह सब एक बन्द कमरे में हुआ। इसलिए यह एक ऐसी सच्चाई है जो गुरुजी, यश के अलावा श्री आर. पी. शर्मा ही जानते थे।
गुरुजी ने यश के परिवार वालों से कहा, ”आप इस बार यश को लेकर ‘महा-शिवरात्रि’ पर गुड़गाँव आओ।” यश के परिवार के सभी सदस्य, भाई व बहनें और उसकी माताजी गुड़गाँव आये और जैसा कि गुरूजी का आदेश था, वे यश को भी उठाकर मुम्बई से विमान द्वारा दिल्ली ले आये। जब विमान, दिल्ली हवाई अड्डे पर उतरा तो यश ने परिवार वालों से किसी तरह की मद्द लेने से इंकार कर दिया और कहा कि वह स्वयं अकेला अपने पैरों पर चलकर एअरपोर्ट के हॉल तक जायेगा। यह सब सुनकर उसके परिवार के सभी लोग अचम्भित हो गये। वे सभी लोग गुड़गाँव पहुंचे और उन्होंने ‘महागुरू’ को प्रणाम किया। उसकी बहनों, भाईयों और यहाँ तक की उसकी माँ की आँखों में भी, आँसू थे।
उसकी माँ ने, मेरी पत्नी के भाई से कहा ”कुलदीप, मैं तो अपने बेटे को खो चुकी थी। गुरूजी ने ऐसा ‘चमत्कार’ किया कि यह आज यहाँ जिन्दा खड़ा है।
उसका पूरा परिवार ‘महा शिवरात्रि’ तक गुड़गांव में ही रहा और उसके बाद, न ब्यान कर सकने वाली खुः शियाँ लेकर अपने घर मुम्बई लौट गया।
….गुरुजी ने, वो कर दिखाया, जो इस संसार में,
कोई और कर ही नहीं सकता था…।
जाते-जाते गुरुजी ने यश को ये आदेश भी दिया कि,
“जिन्दगी में तुम कभी भी मछली नहीं खाना।”
गुरुजी ने, इस परिवार पर अपार कृपा की, उन्होंने यश के दो भाईयों को भी आध्यात्मिक शक्तियाँ प्रदान की।
यश सेठी मुम्बई, अपने घर पहुंचा तो उस दिन के बाद, वह अपनी निजी जिन्दगी एक आम आदमी की तरह जीने लगा। वह खाता-पीता और अच्छी तरह से चलता था। जब कि उसके लिए पहले एक कदम चलना भी दूर की बात थी। वह तो अपनी टांग भी नहीं उठा सकता था। ना ही अपने हाथों से अपना कोई काम ही कर सकता था।
गुरूजी ने, इस परिवार पर अपार कृपा की थी। उन्होंने अपने घर में गुरुजी का स्थान बना दिया। गुरुजी ने उनके दो भाईयों को भी आध्यात्मिक शक्तियाँ प्रदान की और आदेश दिया कि वे भी लोगों की भलाई के लिए स्थान पर सेवा करें। गुरुजी ने उन्हें आशीर्वाद देते हुए कहा, ”यह मेरा मुम्बई का स्थान है। जो कोई भी इस स्थान पर कैसी भी समस्या लेकर आयेगा, चाहे वह शारीरिक हो, मानसिक या फिर सामाजिक, उसका समाधान हो जायेगा।” यह उस परिवार के लिए, एक वरदान था। लोगों ने वहाँ आना शुरु कर दिया और वे ठीक भी होने लगे। गुरुजी ने उन्हें ‘महा-शिवरात्रि’ और ‘गुरु-पूर्णिमा’ पर गुड़गाँव आने की हिदायत भी दी और साथ-साथ यह भी कहा कि यदि कोई गम्भीर बीमारी की अवस्था मे हो, तो उन्हें भी गुडगाँव जरुर लेकर आयें। एक दिन यश का भाई, घबराया हुआ गुडगाँव आया और गुरुजी से प्रार्थना करते हुए बोला कि यश की हालत फिर से खराब हो गयी है। गुरूजी बोले— ”ये तो हो ही नहीं सकता था, जरुर उसने दुबारा माँस या मछली का सेवन किया है।” इसके लिये उसके भाई ने हाँ कहा। तभी गुरुजी, मुझे तथा कुछ अन्य शिष्यों को साथ लेकर हवाई जहाज़ से मुम्बई के लिए रवाना हो गये। जैसे ही हम मुम्बई उनके घर पहुंचे, वहाँ का नज़ारा बहुत अजीब था।
यश सीधा लेटा हुआ था और उसका शरीर बिलकुल ठण्डा पड़ चुका था। उसके परिवार के सदस्य जोर-जोर से रो रहे थे और रोते-रोते ही वे गुरुजी के पास आकर उनसे मिले। इसी बीच गुरूजी ने मुझे आदेश दिया कि मैं जा कर देखू, कि यश की क्या हालत है। मैं वहाँ गया। वहाँ डॉक्टर खेर मौजूद थे। वे यश की सारी हालत से वाकिफ थे। उन्होंने दुबारा उसका ब्लड प्रेशर चेक किया, जोकि जीरो था। मैंने वापिस आकर यह गुरुजी को बता दिया। लेकिन गुरूजी के चेहरे पर न तो किसी प्रकार की चिन्ता या माथे पर कोई शिकन ही नजर आ रही थी। वे यश के कमरे में गये और उसे आशीर्वाद दिया। इस बीच डॉक्टर, उसकी टूटती हुई नब्ज़ चेक करके गुरूजी को बता रहा था। गुरुजी लगातार उस पर अपने आशीर्वादों की वर्षा कर रहे थे। सांयकाल का समय था कि अचानक यश की पत्नी कमरे में आयी और गुस्से से परिवार वालों पर बरसी और कहा— ‘‘क्यों मेरे पति को तुम लोगों ने अब तक घर में रखा हुआ है.!! इसे अस्पताल में क्यों नहीं ले जाते? उसके गुरुजी के प्रति इस प्रकार के अविश्वास-पूर्ण व्यवहार को देखते हुए, सभी लोग स्तब्ध रह गये और गुरुजी ने उसे एम्बुलेन्स बुलाने के लिए कहा और उसे अस्पताल ले जाने की आज्ञा दे दी। लेकिन आर. पी. शर्मा और संदीप सेठी (यश के छोटे भाई) को भी डॉक्टर खेर के साथ अस्पताल भेज दिया। जब यश को एम्बुलेन्स में लिटाया, तो वह जोर से चिल्लाने लगा, बोला—- “मैं त्रिलोकी नाथ हूँ।”
केवल उसका सिर हिल रहा था, लेकिन बाकी शरीर में कोई हरकत नहीं हो रही थी। उसकी नब्ज़ और ब्लड प्रेशर, अब भी जीरो था। डॉक्टर खेर को, कुछ समझ नहीं आ रहा था। क्योंकि उसने कभी न ऐसा देखा या फिर मैडिकल साईस मे ही, कहीं पढ़ा था। लेकिन वह गुरुजी में विश्वास रखता था। वे अस्पताल पहुंचे और डॉक्टरों ने उसकी जाँच पड़ताल करने के बाद, आखिर उनके परिवार वालों को दुः खद समाचार दिया। आर. पी. शर्मा जी, जिन्हें इस परिस्थिति से निबटने के लिए, गुरुजी ने पहले ही निर्देशित कर दिया था। अतः उन्होंने संदीप सेठी को, यश के हाथ पकड़ने को कहा और स्वयं उसके पैरों के अंगूठे को पकड़ा और जैसा गुरुजी ने कहा था, कर दिया। तभी अचानक चमत्कारिक रुप से, यश में जीवन के चिन्ह, नजर आने लगे। उसका ब्लड प्रेशर और नब्ज़ नियमित होने लगी। तभी मैंने अचानक मुड़कर देखा कि आर. पी. शर्मा जी, सोफे पर बैठे-बैठे सो गये और उनका रंग ताँबे की तरह, भूरा पड़ गया था। परन्तु संदीप सेठी सामान्य थे।
यश सेठी ने एक बार फिर से अपनी, सामान्य जिंदगी जीना शुरु कर दिया…।।
….कुछ दिन वहाँ रहने के बाद गुरुजी, आर. पी. शर्मा और अपने अन्य शिष्यों सहित वापिस लौट आये।