सत्तर के दशक की बात है, जब गुरूजी ने मुझे, अपना शिष्य बनाया था। उस समय गुड़गाँव की शिवपुरी कालोनी में, किराये के मकान में, अक्सर 7:30 – 8:00 बजे के बीच बड़े वीरवार की सेवा शुरु होती थी। श्री आर. पी. शर्मा, एस. के. जैन साहब, सूरज प्रकाश शर्मा और कई अन्य शिष्य भी, वहाँ सेवा करते थे।
करीब 20 से 30 लोगों की, लाईन होती थी और उन्हें, हम लोग गुरुजी के पास लाने की सेवा करते थे। उनसे ‘मीठी फुल्लियों का प्रसाद’, स्थान पर चढ़ाने को कहते थे। शुरु-शुरु में तो गुरुजी दोपहर तक सेवा समाप्त कर देते थे और उसके बाद हम लोगों के साथ बैठते तथा माता जी से हमें अक्सर खाना प्रसाद के रुप में मिलता था। कुछ समय तक तो ऐसा ही चलता रहा।
एक दिन की बात है, उस मकान का मालिक आया और शिकायत करने लगा कि मकान की छत पर, जो लोग आते हैं, उनके वज़न से, उसकी छत खराब होनी शुरु हो गई है। उसकी इस बात को सुनने के बाद, गुरुजी ने फैसला किया कि वे अपना घर लेंगे। तब गुरुजी न जमीन लेने के लिए आवेदन किया और अपने बचत खाते व प्रोविडेन्ट फण्ड से पैसा निकाल कर गुड़गाँव के सैक्टर 7 में एक मकान बनाया और वहीं पर उन्होंने, सेवा कार्य शुरु कर दिया। जो भी स्थान पर गुरुजी से मिलने आता, उसे चाय का प्रसाद दिया जाता।
उन दिनों मैं, लोगों के जाने के बाद, उनके चाय के जूठे कप धोता और बरामदे में जहाँ पर बैठकर लोग गुरुजी के दर्शन के लिए इन्तजार करते, वहाँ पर सफाई करता था।
गुरुजी लोगों को आशीर्वाद देते और उन्हें श्री आर. पी. शर्मा जी व एस. के. जैन साहब के पास भेज देते थे। उस समय ये दोनों ही, लोगों की समस्याओं को सुनने की सेवा करते थे। उनके चेहरे पर, किसी प्रकार का तनाव या दवाब नजर नही आता था। इन शिष्यों को गुरूजी ने पूरी तरह दक्षता प्रदान की हुई थी, इसलिए वे विश्वस्त थे और इन शिष्यों के लिए लोगों की बीमारियाँ दूर करना एक मामूली सा कार्य था। परिणाम अपने आप में स्वम् गवाह थे कि लोगों को कैसे तुरन्त आराम मिल जाता था। वह नजारा, दिल को छूने वाला होता था, ऐसा देखकर लगता था कि मैं एक नये संसार में आ गया हूँ।
गुरुजी लाईन में आने वाले हर किसी व्यक्ति को आशीर्वाद देते और उनकी समस्या को सुनते और उन्हें अपने शिष्यों के पास भेज देते। जो लोग दूसरी बार गुरुजी के पास आते तोआश्च र्य………!!
…..गुरुजी को उसकी समस्या का पता होता ।
गुरुजी के मनमोहक और दिल लुभाने वाले चेहरे पर जो मुस्कुराहट होती थी, उसे छोड़ कर कोई भी अपने आप को उनसे दूर नहीं रख पाता था। उनकी चाल-ढाल, किसी आम व्यक्ति से भिन्न थी। उनके चारों ओर एक विशेष प्रकार का तेज़ था। उनका एक अलग ही स्वरुप था। किशोरावस्था से ही, मुझे भगवान शिव से लगाव था और मैं पूजा-अर्चना किया करता था। मैं परम ज्ञान के लिए इधर-उधर भटकता रहता था। मैं बहुत से संत महात्माओं और ज्ञानियों से मिला।
लेकिन गुरुजी से मिलने के बाद, मुझे उन जैसा कोई नज़र नहीं आया। उनकी तुलना किसी और के साथ करना असम्भव था। हर तरह से, ….वे भिन्न थे। अतुल्यनीय थे। वे जिस किसी को भी देख लेते, वह उनसे तन-मन और आत्मा से जुड़ सा जाता था। गुरूजी से मिलने के बाद, मुझे कहीं ओर जाने की जरुरत ही महसूस नहीं हुई। गुड़गांव के सैक्टर 7 वाले अपने नये घर में आने के बाद, दिनों-दिन गुरुजी के पास आने वाले लोगों की संख्या लगातार बढ़ने लगी। पहले इनकी संख्या सैंकड़ों में थी, अब ये हजारों में हो गई। अब अस्सी के दशक के आते-आते, गुरुजी सुबह 3: 30 बजे से आशीर्वाद देना शुरु करते और रात को ग्यारह-बारह बजे तक सेवा चलती रहती और फिर कुछ वर्षों तक ऐसा ही चलता रहा।
गुरुजी हमें आदेश देते कि आप लोग बाहर जाकर लाईन में लगे लोगों का ध्यान रखो। हम लोग भी बाहर जाकर चलना शुरु करते, जहाँ तक लोगों की लाइन लगी होती। हम एक-एक व्यक्ति की तरफ देखते वे भी मुस्कुरा कर हमारा अभिवादन और हमें प्रणाम करते। हम भी उन्हें हवा में हाथ हिलाकर शान्ति से गुरुजी का इन्तजार करने के लिये कहते। इसी तरह चलते-चलते हम लाईन के अन्त तक जाते, जहाँ तक सड़क के किनारे-किनारे स्थान से करीब 2 किलो मीटर दूर तक लोगों की लाइनें लगी होती। लाईन के अन्त तक, एक जैसा ही नजारा देखने को मिलता…….!!
लोगों की लगातार बढ़ती हुई भीड़ की संख्या को देखते हुए, गुरुजी स्थान से बाहर आकर लाईन में ही चलते-चलते, हर व्यक्ति से बात करते, आशीर्वाद देते, उनके सिर पर हाथ रखते। फिर वो चाहे पुरुष हो या स्त्री और या फिर छोटा बच्चा या बूढ़ा ही क्यों न हो। वे हर किसी से कहते कि— स्थान पर….
”मीठी फुल्लियों का प्रसाद” चढ़ाओ, और अपनी समस्याएँ, मेरे शिष्यों को बता दो।
लोग उनके शिष्यों के पास आकर उनके सामने कारपेट पर बैठ जाते और शिष्य उन्हे जल व उनके द्वारा लाये गये लौंग, इलायची व काली मिर्च बना देते। (यहाँ पर बनाने का अर्थ है : लौंग, इलायची व काली मिर्च को, शिष्य द्वारा, अपने माथे से लगा कर, उन्हें ‘आध्यात्मिक शक्तियों’ से, अभिमंत्रित करना) आने वाले, हर किसी व्यक्ति को यह समझाना कि उसे किस तरह से लौंग, इलायची और काली मिर्च का सेवन करना है और जब तक वे पूर्ण रुप से स्वस्थ न हो जाएं वे लौंग, इलायची का सेवन करता रहे और जल पीता रहे। ..इसे समझने के लिए सिर्फ एक विश्वास की जरूरत है। इसमें बुद्धि अथवा विवेक के इस्तेमाल की कोई जरूरत नहीं।
गुरुजी, अपने आप में पूर्ण हैं और उनके पास ज्ञान का भंडार है, इसलिए देखो और केवल उस समय का इन्तजार करो कि कब आपके ऊपर भी उनकी कृपा हो जाए।
इसकी किडनियाँ तो ठीक हैं।
एक बार एक दम्पति, अपने नवजात शिशु को गोद में लेकर लाईन में बैठा, गुरूजी का इंतजार कर रहा था कि तभी वहाँ गुरूजी पहुंचे। उस महिला ने अपना बच्चा, गुरुजी के हाथों में दे दिया और कहने लगी— ”गुरुजी, मेरे इस बेटे के गुर्दे (किडनियाँ), काम नहीं कर रहे हैं।”
गुरूजी ने उस बच्चे को अपने हाथों में उठाया और बोले—-नहीं बेटा, “इसकी किडनियाँ तो ठीक हैं।” और बच्चा उस महिला को लौटा दिया और अगले व्यक्ति को आशीर्वाद देने के लिए आगे बढ़ गये। गुरुजी लाईन में बड़ी तेजी से चलते थे, लेकिन वे हर किसी की समस्या से वाकिफ होते थे। वे हर किसी को आशीर्वाद देकर जाते थे। उन्हें कई बार लोगों से ये कहते हुए सुना और देखा— ”तू अब ठीक है ना बेटा?”
सन् 2008 की बात है, एक परिवार पंजाबी बाग स्थान पर आया। एक महिला ने अपने बेटे की किसी शैक्षिक समस्या के बारे में, मुझसे कहा। मैंने उससे पूछा— कि क्या आप पहली बार आये हो….? तो वह कहने लगी— ”नहीं गुरुजी, मैं तो बहुत पहले से आती हूँ, मैंने तो बड़े गुरुजी से भी आशीर्वाद लिया हुआ है,…जब वे शरीर में थे”
वह फिर बोली— ”गुरुजी, जब मेरा यह बेटा पैदा हुआ था, तो डॉक्टरों ने बताया था कि इसकी किडनियाँ काम नहीं कर रही। हमारे ऊपर तो जैसे दुः खों का पहाड़ सा टूट पड़ा था। तभी हमें किसी ने बताया कि आप गुड़गाँव जाओ और गुरुजी से मिलो। हम गुड़गाँव चले गये और वहाँ लाईन में बैठ कर गुरुजी के दर्शन के लिए अपनी बारी का इन्तजार करने लगे।
जब गुरुजी आये और उन्होंने मेरे सिर पर हाथ रखा, तो मैंने उनसे कहा—- ”गुरुजी, मेरे इस नवजात शिशु की किडनियाँ काम नहीं कर रहीं” तो गुरुजी ने इस बच्चे को अपने हाथों में उठाया और कहा—- ”नहीं बेटा, इसकी किडनियाँ, तो बिलकुल ठीक हैं।”
गुरुजी यह वही लड़का है, जो इस समय आपके सामने आपका आशीर्वाद लेने के लिए बैठा है।