एक और सुन्दर घटना नागपुर में घटित हुई, जब सोमवार के उपवास के दिन भोजन पूरा पूरा ही था। सोमवार की रात थी, आलू की सब्जी और चपातियाँ सीताराम जी ने बनाई। तीनों को बहुत ज़ोर से भूख लगी थी और सभी इन्तजार कर रह थे कि कब गुरुजी उपवास खोलने की आज्ञा देगें….!! संयोगवश, आठ लोग और आ गये। गुरुजी ने सीताराम जी को आज्ञा दी कि वे सभी उपस्थित लोगों के लिए खाना परोसें। अब चार लोगों के लिए बनाया गया खाना, बारह लोगों में कैसे परोसा जा सकता था। इस पर ये कि सुरेन्द्र तनेजा और सीताराम जी को भूख भी बहुत ज़ोर से लग रही थी। परन्तु गुरुजी ने कहा कि परोसने के लिए खाना ले आओ। अतः उन्होंने कारपेट, जहाँ गुरुजी और सभी भक्तजन खाने के लिए बैठे थे, सब्जी का पतीला और सभी चपातियाँ एक प्लेट में लाकर रख दी।
सब्जी प्लेट में परोस दी गई। गुरुजी ने चपातियों की प्लेट हाथ में ले ली और सभी को चपातियाँ बाँट दी। गुरुजी ने दुबारा फिर, सभी को चपातियाँ बाँटी और चमत्कार हो गया। सभी लोग तृप्त हो गये और गुरुजी शिष्यों को और चपातियाँ लेने के लिए आग्रह कर रहे थे, लेकिन किसी के पेट में और जगह नहीं थी। अतः किसी ने भी और चपाती नहीं ली। कुछ चपातियाँ अभी भी उसी प्लेट में थी, जो बच गयी थी।
जाने के दाम और काना कम उन लोगों के जाने के बाद, गुरुजी ने सीताराम जी और सुरेन्द्र को भरपूर डॉट लगाई और कहने लगे – “मेरे शिष्य होकर तुमने कैसे सोच लिया कि खाना कम पड जायेगा और भूखा रहना पड़ेगा..?”
गुरूजी ने आगे कहा— “जहाँ गुरू होते हैं वहाँ लंगर जरूर चलता है, ऐसा ईश्वरीय विधान है। जितने भी लोग आते हैं सभी खाना खा कर ही जाते हैं। कोई भूखा नहीं जाता और खाना कभी कम नहीं हो सकता।”
लगता है कि उपरोक्त घटना के रचैयता गुरुजी स्वयं थे।
* खाना कम पड़ जाना और
* शिष्यों के मन में विचार आना कि भूखा रहना पड़ेगा और
* अन्त में सबके मन के विचार जानकर अपने अन्तर्यामी होने का प्रमाण देना।
* 4 लोगों का खाना 12 लोगों को खिलाना और फिर भी कुछ बच जाए, यह अविश्वस्नीय है।
गुरुजी हमारी सोच की सीमाओं से बहुत ऊपर हैं।
…धन्य हैं गुरुदेव आप कोटि-कोटि प्रणाम है आपको… साहिब जी।