इस दिन का अपना एक अलग ही महत्व है उन लोगों के लिए, जिन्हें अपने इस जीवन में अपने गुरु का आशीर्वाद मिल गया हो।
इस दिन एक शिष्य अपने गुरु की पूजा करता है फूलों से, उनके चरण धोता है केसर के जल से, एक नारियल और नौ वस्त्र अपर्ण करता है, उन्हें मिठाईयाँ भी अपर्ण करता है और कभी-कभी उन्हें अपने हाथ से खिलाता भी है।
इस दिन ‘गुरु’ उन्हें ना नहीं कह सकता। इस दिन गुरू बहुत खुः श होता है और शिष्य को आशीर्वाद देता है और मीठे केसर युक्त चावल का प्रसाद देता है। सम्पूर्ण भारतवर्ष में गुरु शिष्य के बीच वस्त्र, गुरु को अर्पित करने की परम्परा प्रचलित है।
लेकिन हमारे गुरुजी ने वस्त्रों के बदले सिर्फ एक रुमाल पर 9 वस्त्र लिखकर एक नई प्रथा को जन्म दिया ताकि कुछ लोग अपनी आर्थिक स्थिति के कारण खर्च नहीं कर सकते, वे अपने को दूसरों से हीन ना समझें।
वाह….गुरुजी ….वाह!! कितना ध्यान रखते हैं आप अपने भक्तों की भावनाओं का।
गुरुजी ने अपने शिष्यों को यह आदेश दिया कि केवल एक नारियल को एक रुमाल में लपेट कर, उसी पर नौ वस्त्र लिखकर अर्पण करें। पूछने पर उन्होंने एक ईश्वरीय अन्दाज के साथ उत्तर दिया…..
ये मैं हूँ, जो नौ वस्त्रों के रुप में इसे स्वीकार करता हूँ।
धर्म व शास्त्रों के नियमों में पूर्ण परिवर्तन और उन्हें सरल करने वाले सिर्फ आप। आप ही आप हैं गुरुजी, आपकी बराबरी सिर्फ आप ही कर सकते हैं
………ऐ मालिक
हजारों… लाखों प्रणाम… हे गुरुदेव…..।।