लाजपत नगर में रहने वाली नीलम, एक आर्किटेक्ट की पत्नी जिसे ब्लड़ कैंसर था, बड़े वीरवार के दिन गुड़गाँव पहुंची। उसने गुरुजी से इस बीमारी को ठीक करने के लिये आशीर्वाद देने की प्रार्थना की तो गुरूजी ने उसे स्थान पर ‘मीठी फुल्लियों का प्रसाद’ चढ़ाने का आदेश दिया। गुरुजी ने उसे लौंग, इलायची तथा जल दिया। कुछ दिन बाद वह फिर आशीर्वाद लेने आयी। उस दिन गुरुजी अपनी एक विशेष अलग मुद्रा (Different Mood) में बैठे हुए थे। आशीर्वाद देने के बाद उन्होंने कुछ फुल्लियाँ स्थान से उठाकर उसे इस आदेश के साथ दी कि वह उसमें से एक-एक दाना रोज़ खाये। कुछ दिनों के बाद उसने अपनी जाँच कराई तो डॉक्टर लोग आश्चर्य चकित होकर बोले कि अब वह ब्लड कैंसर की मरीज़ नहीं है। वह और उसका पूरा परिवार खुःशी से झूम उठा। अब वह एक स्वस्थ महिला थी और उसमें इस बीमारी का नामों निशान भी नहीं था। गुरूजी ने नीलम को आदेश दिया कि वह एक साल तक दूसरे बच्चे को जन्म न दे। उसकी जिन्दगी खूबसूरत और खुः शहाल चल रही थी।
उसका पति भी एक अच्छा इन्सान था और गुरुजी का भक्त भी था और अपनी पत्नी के साथ गुरुजी के दर्शन करने आता रहता था। चमत्कारिक रुप से उसकी बीमारी ठीक होने के कारण, उसका मुझसे तथा अन्य शिष्यों जैसे आर. पी. शर्मा और पटेल नगर के ए. पी. चौधरी के साथ मेलजोल बढ़ गया। एक बार बड़े वीरवार के दिन स्थान पर फुल्लियाँ चढ़ाने के बाद वह मेरे पास आयी और आँखों में आँसू भर तथा अपने पति की तरफ इशारा करते हुए बोली, “गुरुजी, ये मुझे प्यार नहीं करते और मुझसे दूर-दूर रहते हैं। मुझे ऐसी जिन्दगी नहीं चाहिए इसलिये मैं मौत माँगती हूँ।” उसकी यह बात सुनते ही मैं काँप उठा और उसे डाँटते हुए बोला, “आज वो दिन है कि गुरुजी किसी की भी किसी इच्छा के लिये ‘ना’ नहीं करते।” मैंने उसे आदेश देते हुए कहा कि जाओ और तुमने मौत के लिये जो शब्द अभी-अभी बोले हैं, वापिस ले लो और माफी मांगो। इसी तरह बहुत से महीने निकल गये। एक बार वह गुड़गाँव आई और उसने गुरुजी को प्रणाम किया। गुरुजी कुछ संजीदा हो गये। गुरुजी के प्रारम्भिक शिष्य, ए. पी. चौधरी ने गुरुजी से उनकी संजीदगी का कारण पूछा। गुरुजी ने जवाब दिया, “मैंने इसे बच्चा पैदा करने से मना किया था पर ये तो गर्भवती है।” गुरुजी बोले, “अब मैं “बुढ्ढ़े बाबा’ को कैसे मनाऊँ…? यह उन्हीं का आदेश था कि एक साल तक बच्चा न हो। परन्तु इसके पेट में तो बच्चा है।” चौधरी ने पूछा, “गुरुजी अब क्या होगा..?” गुरुजी बोले, “…..अब मुश्किल लग रहा है बेटा, बुढ्ढ़े बाबा को मनाना पड़ेगा। गुरू की बात को ना मानना ऐसा ही है जैसे बाहर बर्फ-बारी हो रही हो और इन्सान बिना कपड़ों के उसमें जाये।” अब चौधरी जी परेशान हो गये। अब क्या हो सकता था, वह दुबारा बीमार हो गई और अन्ततः ईश्वर के पास चली गई। पंजाबी में गुरू-शिष्य से सम्बन्धित एक कहावत है
‘धर जा, ते मर जा’
अर्थात गुरू के प्रति समर्पण, बिना किसी शर्त के जरुरी है ।